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जहाँ पवन की गती नहीं
जहाँ पवन की गती नहीं, रवि शशी उदय न होय।जो फल ब्रह्मा नहीं रच्यो, निपट मांगत सोय॥
निपट निरंजन
जब हम होते तू नहीं
जब हम होते तू नहीं, अब तू है हम नाहीं।जल की लहर जल में रहे जल केवल नाहीं॥
निपट निरंजन
मुह देखे का प्यार है
मुह देखे का प्यार है, देखा सब संसार।पैसे दमरी पर मरे, स्वार्थी सब व्यवहार॥
निपट निरंजन
सुनियत कटि सुच्छम निपट
सुनियत कटि सुच्छम निपट, निकट न देखत नैन।देह भए यों जानिये, ज्यों रसना में बैन॥
रसलीन
होय अपत सब बिधि निपट
होय अपत सब बिधि निपट, रच्छक-दलन दुराय।फिरि किंसुक! यों फूलिबो, मोहिं न तनिक सुहाय॥
मोहन
ना देवल में देव है
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
निपट निरंजन
जरै सु नाथ निरंजन बाबा
जरै सु नाथ निरंजन बाबा, जरै सु अलख अभेव।जरै सु जोगी सब की जीवनि, जरै सु जग में देव॥
दादू दयाल
निपट निकट निसि मुख निरखि
निपट निकट निसि मुख निरखि, नलिनी नयन री आज।छटपटाति घर जान हित, कह जमाल किहि काज॥
जमाल
दादू नमो नमो निरंजन
दादू नमो नमो निरंजन, निमसकार गुरुदेवतह।बंदनं श्रब साधवा, प्रणामं पारंगतह॥
दादू दयाल
रतन रमा सी सुख सदन
रतन रमा सी सुख सदन, वनि सारद धरि ग्यान।खलन दलन हित कालिका, वनि करि धारि कृपान॥
रत्नावली
ब्रजदेवी के प्रेम की
ब्रजदेवी के प्रेम की, बँधी धुजा अति दूरि।ब्रह्मादिक बांछत रहैं, तिनके पद की धूरि॥
ध्रुवदास
बारेपन सों भातु पितु
बारेपन सों भातु पितु, जैसी डारत वानि।सो न छुटाये पुनि छुटत, रतन भयेहुँ सयानि॥
रत्नावली
कपट वचन अपराध तैं
कपट वचन अपराध तैं, निपट अधिक दुखदानि।जरे अंग में संकु ज्यौं, होत विथा की खानि॥
मतिराम
जो मन वानि देह सों
जो मन वानी देह सों, पियहिं नाहिं दुःख देति।रतनावलि सो साधवी, धनि सुख जग जस लेति॥